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स्वास्थ्य रक्षक सखा-Health Care Friend

Friday 3 May 2013

प्रार्थना भी भय का विस्तार....! मई-I, 2013

मनुष्य के जीवन को क्या हो गया है? यह मनुष्य की इतनी अशांति और दुख की दशा क्यों है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि मनुष्य जो होने को पैदा हुआ है, वही नहीं हो पाता है, जो पाने को पैदा हुआ है, वही नहीं उपलब्ध कर पाता है, इसीलिए मनुष्य इतना दुखी है? अगर कोई बीज वृक्ष न बन पाए तो दुखी होगा। अगर कोई सरिता सागर से न मिल पाए तो दुखी होगी। कहीं ऐसा तो नहीं है कि मनुष्य जो वृक्ष बनने को है, वह नहीं बन पाता है और जिस सागर से मिलने के लिए मनुष्य की आत्मा बेचैन है, उस सागर से भी नहीं मिल पाती है, इसीलिए मनुष्य दुख में हो? धर्म मनुष्य को उस वृक्ष बनाने की कला का नाम है।-ओशो

अधार्मिक होना और दुखी होना, एक ही बात को कहने के दो ढंग हैं। इसलिए कोई कभी कल्पना न करे कि अधार्मिक होते हुए भी कोई व्यक्ति कभी आनंदित हो सकता है। यह असंभव है। जैसे शरीर की बीमारियां हैं, और शरीर से बीमार आदमी कैसे आनंदित हो सकता है? शरीर तो स्वस्थ चाहिए। वैसे ही आत्मा की बीमारियां भी हैं। अधर्म आत्मा की बीमारी का नाम है। जो आत्मा की बीमारी में पड़ा हुआ है वह कैसे आनंदित हो सकता है? शरीर दुखी हो तो भी एक आदमी भीतर आनंदित हो सकता है। लेकिन भीतर की आत्मा ही दुखी हो तब तो आनंदित होने की कोई उम्मीद नहीं है, कोई आशा नहीं है। लेकिन जिस आत्मा को आनंदित करना है, उस आत्मा के लिए हम कुछ भी नहीं करते, शरीर के लिए सब कुछ करते हैं।-ओशो

सत्य होगा तो एक ही होगा। लेकिन एक सत्य के नाम पर जब तीन सौ संप्रदाय खड़े हो जाते हैं, तो सत्य की खोज करनी भी मुश्किल हो जाती है। हिंदू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं, जैन हैं-और धार्मिक आदमी कहीं भी नहीं है। धार्मिक आदमी नहीं है, इसलिए इतनी बेचैनी है, इतनी अशांति है, इतना दुख है।-ओशो

रात सोते वक्त खयाल रखना। जैसे मंदिर में दंडवत कर रहे हो, ऐसे बिस्तर पर सो जाना। उसी दंडवत के भाव में नींद लग जाऐ। सुबह उठना, तो परिक्रमा का भाव और जो भी करना, उसे उसकी ही सेवा समझना।-ओशो

सत्य एक क्षण में दिखाई पड़ सकता है। बस एक ही शर्त है कि उस क्षण तुम सोचो मत। जरा सा विचार और वर्तुल शुरू हो जाता है। तुम दूर निकलना शुरू हो गए। तुम बड़ी दूर पहुँच गए। जरा सा सो बड़ी दूर ले जाता है। जरा सा अ-सोच तत्क्षण तुम्हें स्वयं से मिला देता है।-ओशो

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