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स्वास्थ्य रक्षक सखा-Health Care Friend

Friday 7 December 2012

स्वर्ग पर पहुँचने के रास्ते खोजने में पृथ्वी पर रास्ते बनाना भूल गए हैं| ओशो वाणी : दिसम्बर, 2012

जिसको तुम प्रेम करते हो, जिसकी जरा-जरा सी बात की तुम चिन्ता-फिकर करते हो, कि उसके पैर में मोच न आ जाए, इसकी फिकर लेते हो, तुम उसी को गोली मार सकते हो! अगर उसका व्यवहार तुम्हारे अहंकार के विपरीत हो ताए तो उसको जहर पिला सकते हो! उसी को तुम पहाड़ से ढकेल सकते हो! ऐसा तुम्हारा प्रेम, प्रेम नहीं हैं| जो प्रेम घृणा बन सकता है, वह प्रेम नहीं है! प्रेम यदि सच में ही प्रेम है, तो वह घृणा कैसे बन सकता है?-आचार्य रजनीश ओशो|

ऐसे तो सभी मरते हैं, लेकिन धन्यभागी है वह, जो बोधपूर्वक मरता है, जो प्रेस से मरता है| देह तो मरेगी ही; लेकिन जो अहंकार को मर जाने देता है, उससे बड़ा सौभाग्यशाली व्यक्ति इस पृथ्वी पर दूसरा नहीं|-ओशो

आदर्शों के वस्त्रों में हम छिपा तो सकते हैं, लेकिन मिटा नहीं सकते| छिपाना मिटाने का उपाय नहीं है|-ओशा

जो हम नहीं हैं, वह हम अपने को मानते हैं और जो हम हैं, वह हम अपने को जानना भी नहीं चाहते हैं, मानने की बात दूर| हम उस तरफ आँख भी नहीं उठाना चाहते हैं|-ओशो

प्रेम किसी को नहीं जानता! : प्रेम न तो जाति को जानता है, न कुल को जानता है, न कुलीनता को जानता है, न धन को जानता| प्रेम का धन से क्या सम्बन्ध है? प्रेम न रंग को जानता है| हड्डी-मांस-मज्जा से प्रेम का सम्बन्ध क्या है? तुम हिन्दू हो कि मुसलमान कि जैन कि ईसाई, प्रेम का लेना-देना क्या है?-आचार्य रजनीश ओशो

आदमी पशु है! हम एक-एक आदमी को समझा रहे हैं कि तुम स्वयं परमात्मा हो| सच्चाई यह है कि हर आदमी परमात्मा नहीं है, सिर्फ पशु है| आदमी पशु है, यह तथ्य है, आदमी परमात्मा हो सकता है, यह संभावना है| लेकिन हम समझा रहे हैं आदमी परमात्मा है| साधु-सन्यासियों के पास पापी बैठकर सिर हिला रहे हैं और कहते हैं, धन्य महाराज, बहुत ठीक आप कह रहे हैं| क्योंकि वे साधु सन्यासी समझाते क्या हैं? वे समझाते हैं, तुम परमात्मा हो! तुम्हारे भीतर स्वयं सच्चिदानंद ब्रह्म का निवास है, तुम वही हो| और पापी बड़ा प्रसन्न होता है| अपने को भूलने में सुविधा मिल जाती है| वह जो है, उससे बचने का रास्ता मिल जाता है| सपने में वह ब्रह्म हो जाता है और वस्तुत: वह पशु बना रहता है और उसके पशु होने और ब्रह्म होने में एक दीवार खड़ी हो जाती है| होता है पशु, उसे छिपा लेता है| जो नहीं होता, उसका अभिनय करने लगता है| और इस तरह भारत का पूरा व्यक्तित्व स्प्लिट पर्सनैलिटी है, पूरा व्यक्तित्व खंड-खंड हो गया| दो बड़े खंडों में टूट गया-जो हम नहीं हैं, वह हम अपने को मानते हैं और जो हम हैं, वह हम अपने को जानना भी नहीं चाहते हैं, मानने की तो बात ही दूर है| हम उस तरफ आंख भी नहीं उठाना चाहते हैं| बड़ी तरकीब है यह| आदमी पशु है, यह भारत में आज तक स्वीकृत नहीं हो सका| और आदमी पशु है| पशुओं की बड़ी जमात का ही एक हिस्सा है| और जब तक हम आदमी की इस पशुता के तथ्य को, यह रियलिटी है, यथार्थ है, इसको स्वीकार नहीं करते, तब तक इसके रूपान्तरण को भी कोई मार्ग नहीं मिल सकता है|-आचार्य ओशो|

विश्रांत व्यक्ति भयभीत नहीं हो सकता है| तुम एक विश्रांत व्यक्ति को भयभीत नहीं कर सकते| यदि भय आता भी है, वह लहर की तरह आता है...वह जड़ें नहीं जमाएगा|

भय लहरों की तरह आता है और जाता है और तुम उससे अछूते बनते रहते हो, यह सुंदर है| जब वह तुम्हारे भीतर जड़ें जमा लेता है और तुम्हारे भीतर विकसित होने लगता है, तब यह फोड़ा बन जाता है, कैंसर का फोड़ा| तब वह तुम्हारे अंतस की बनावट को अपाहिज कर देता है|

तो जब कभी तुम आतंकित महसूस करो, एक चीज देखने की होती है कि शरीर तनावग्रस्त नहीं होना चाहिए| जमीन पर लेट जाओ और विश्रांत होओ, विश्रांत होना भय की विनाशक औषधि है; और वह आएगा और चला जाएगा| तुम बस देखते हो|

देखने में पसंद या नापंसद नहीं होनी चाहिए| तुम बस स्वीकारते हो कि यह ठीक है| दिन गरम है; तुम क्या कर सकते हो? शरीर से पसीना छूट रहा है...तुम्हें इससे गुजरना है| शाम करीब आ रही है, और शीतल हवाएं बहनी शुरू हो जाएंगी...इसलिए बस देखो और विश्रांत होओ|-आचार्य आशो

हिंदुस्तान ने पॉंच हजार सालों से जमीन पर चलने लायक रास्ता नहीं बनाया, स्वर्ग पर पहुँचने के रास्ते खोजे हैं| स्वर्ग पर पहुँचने के रास्ते खोजने में पृथ्वी पर रास्ते बनाना भूल गए हैं| हमारी आँखें आकाश की तरफ अटक गयी हैं| और हमारे पैर तो मजबूरी से पृथ्वी पर ही चलेंगे| बीसवीं सदी में आकर हमको अचानक पता चला है कि हमारी आँखों और पैरों में विरोध हो गया है| आँखें आकाश से वापस जमीन की तरफ लौटी हैं तो हम देखते हैं, नीचे कोई रास्ता नहीं है| नीचे हमने कभी देखा नहीं|-आचार्य रजनीश ओशो|

ज्योतिषी : मैंन सुना है कि यूनान में एक बहुत बड़ा ज्योतिषी एक रात एक गढ्ढे  में गिर गया| जोर से चिल्लाया तो बड़ी मुश्किल से पास की किसी किसान औरत ने उसे निकाला| जब उसे निकाला, तो उस ज्योतिषी ने कहा है कि मॉं, बहुत धन्यवाद| मैं एक बहुत बड़ा ज्योतिषी हूँ, तारों के संबंध में मुझसे ज्यादा कोई नहीं जानता| अगर तुझे तारों के संबंध में कुछ जानना हो तो मैं बिना फीस के तुझे बता दूँगा| मेरी फीस भी बहुत ज्यादा है| उस बूढ़ी औरत ने कहा, बेटे तुम निश्चिंत रहो, मैं कभी न आऊँगी, क्योंकि जिसे अभी जमीन के गढ्ढे नहीं दिखायी पड़ते हैं, उसके आकाश के तारों के ज्ञान का भरोसा मैं कैसे करूँ?-आचार्य ओशो

स्त्रोत : जयपुर, राजस्थान से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका " के 01.12.12 & 16.12.12 के अंक से साभार!

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