Labels

स्वास्थ्य रक्षक सखा-Health Care Friend

Sunday 30 September 2012

जो प्रेम घृणा बन सकता है, वह प्रेम नहीं है! ओशो वाणी सितम्बर, 2012

आत्मीयता का मतलब होता है कि किसी अजनबी के सामने स्वंय को पूरी तरह से उघाड़ देना!

जानवर भी जानते हैं कि प्रेम कैसे करना है, लेकिन आदमी को सीखना पड़ता है!

प्रेम करना और प्रेम चाहना, ये बड़ी अलग बातें हैं| प्रेम चाहना बिलकुल बच्चों जैसी बात है| छोटे-छोटे बच्चे प्रेम चाहते हैं| मॉं उनको प्रेम देती है| फिर वे बड़े होते हैं| वे और लोगों से भी प्रेम चाहते हैं, परिवार उनको प्रेम देता है| फिर वे और बड़े होते हैं| अगर वे पति हुए, तो अपनी पत्नियों से प्रेम चाहते हैं| और जो भी प्रेम चाहता है, वह दुख झेलता है| क्योंकि प्रेम चाहा नहीं जा सकता, प्रेम केवल किया जाता है| चाहने में पक्का नहीं है, मिलेगा या नहीं मिलेगा| और जिससे तुम चाह रहे हो, वह भी तुमसे चाहेगा| तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी| दोनों भिखारी मिल जाएंगे और भीख मांगेंगे| दुनिया में जितना पति-पत्नियों का संघर्ष है, उसका केवल एक ही कारण है कि वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम चाह रहे हैं और देने में कोई भी समर्थ नहीं है|

अगर पति-पत्नी एक-दूसरे को प्रेम देना शुरू कर दें और मांगना बंद कर दें, तो जीवन स्वर्ग बन सकता है| और जितना वे प्रेम देंगे और मांगना बंद कर देंगे, उतना ही--अदभुत जगत की व्यवस्था है--उन्हें प्रेम मिलेगा| और उतना ही वे अदभुत अनुभव करेंगे--जितना वे प्रेम देंगे, उतना ही सेक्स उनका विलीन होता चला जाएगा|

सब लोग प्यार खोज रहे हैं और वह किसी को नहीं मिल रहा| प्यार के लिये दिलों में जो एक जुम्बिश चाहिये और अपने ‘मैं’ को लुटाने को जो अहसास चाहिये, वह तो कहीं है नहीं, फिर प्यार किसे और कैसे मिलेगा|

प्रेम का दुख हार्दिक है| कांटा हृदय में चुभता है, भूख हृदय में अनुभव होती है| उदासी, विषाद हृदय के केन्द्र में उमग्रता है| प्रेम का दुख आत्मिक है| और निश्‍चित ही जो आत्मिक दुख उठाने को तैयार है, उसने कीमत चुकाई, अपने जीवन को यज्ञ बनाया| जो जीवन को यज्ञ बना लेते हैं, वे ही पहुंचते हैं|-ओशो

आदर्शवाद का अर्थ होता है-जो है, वह महत्वूपर्ण नहीं है, जो होना चाहिये, वह महत्वपूर्ण है| और जो है, वही वस्तुत: महत्वूपर्ण है, जो होना चाहिये उसका कोई भी मूल्य नहीं है, क्योंकि वह नहीं है| बीज वृक्ष हो सकता है, लेकिन बीज वृक्ष है नहीं| बीज है बीज-वृक्ष होने की मात्र सम्भावना है| सम्भावना हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती है|-ओशो

तुम्हें जब भी कुछ चुभता है, तब तुम समझते हो कोई तुम्हें चुभा रहा है, तुम भूल में हो| जब भी तुम्हें कुछ चुभता है, उसका अर्थ है कि तुम कांटे देखने में इतने कुशल हो गये हो कि हर चीज कांटा हो गयी है और हर चीज चुभती है|-ओशो

तुम सोचते हो तुमने बड़ा भारी काम किया, कोई शहीद हो गए! सोच रहे होओगे कि शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले| क्या विचार कर रहे हो? यह भी कोई प्रेम हुआ जो एक पर चुक गया? बूंद-बूंद रहा होगा, एकाध ही बूंद रहा होगा कि टपका कि खतम! फिर झरना ही सूख गया? इतना विराट संसार! प्रभु इतने रूपों में प्रकट! और तुम एक रूप में ही ऐसे भटक गये कि फिर तुम किसी और को प्रेम न कर पाये! तुम सोचते होओगे कि इतना बड़ा मैंने प्रेम किया, कि देखो, वह तो नहीं मिली, लेकिन मैं अब भी उसी का हूँ! फिर किसी को प्रेम नहीं किया!-ओशो

प्रेम की तीन सीढियॉं हैं-साधारण प्रेम: जो मित्र-मित्र, पति-पत्नी, मॉं-बेटे, भाई-भाई में होता है| असाधारण प्रेम: शिष्य और गुरु में होता| तीसरा : आत्मा और परमात्मा में, बूंद और सागर में होता है|-ओशो

जो भी समाज आदर्शवादी होगा, वह समाज सड़ जायेगा, वह समाज विकसित नहीं हो सकता| यथार्थवादी समाज होना चाहिये| प्रतिभा का विकास यथार्थवाद के मार्ग से होता है, आदर्शवाद के मार्ग से नहीं होता|-ओशो

जो प्रेम घृणा बन सकता है, वह प्रेम नहीं है| प्रेम और घृणा कैसे बन सकता है?-ओशो

प्रेम और ध्यान : प्रेम का मतलब होता है-‘दूसरों के साथ होने की कला|’ जबकि ध्यान का मतलब है-‘स्वयं के साथ होने की कला|’-ओशो

विज्ञान जब तक प्रयोग में न लाया जाये तब तक व्यर्थ है| ज्ञान जब जीवन में उतरता है, तभी विज्ञान बनता है| विज्ञान याने विशेष ज्ञान|-ओशो

स्त्रोत : जयपुर, राजस्थान से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका " के  सितम्बर के अंकों से साभार!

No comments:

Post a Comment

Followers