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Friday 2 November 2012

प्रेम इतना सुन्दर है कि कुरूप चीज भी इसके भीतर छिप सकती है! ओशो वाणी : अक्टूबर, 2012

जागा हुआ प्रेम ही प्रार्थना : सोये रहने वाले के लिये जिस प्रकार केवल सुबह हो जाने से ही कुछ नहीं होता| उसी प्रकार प्रेम हो जाने से ही कुछ नहीं होता| प्रेम हो-होकर भी लोग चूक जाते हैं| मन्दिर के द्वार तक आ-आकर लोग मुड़ जाते हैं, चूक जाते हैं| सीढियॉं चढ-चढकर लौट जाते हैं| प्रेम तो जीवन में बहुत बार घटता है, मगर बहुत थोड़े ही धन्यभागी होते हैं, जो जागते हैं| जो जाग जाते हैं, उनके प्रेम का नाम प्रार्थना है| जागे हुए प्रेम का नाम प्रार्थना है| जबकि सोई हुई प्रार्थना का नाम प्रेम है|-आशो|

तुम्हें एक बात हमेशा याद रखनी चाहिये कि जो लोग तुम्हारे साथ कार्य करते हैं, उन्हें तुम्हारे भीतर के जीवन से कुछ लेना-देना नहीं है| उससे निपटना तुम्हारा काम है; उनका अपना भीतर का जीवन है, जिसे उन्हें देखना है| उनके अपने नकारात्मक भाव हैं, उनकी अपनी व्यक्तिगत समस्याएं हैं| लेकिन जब तुम किसी के साथ कार्य कर रहे हो तो तुम्हें इसे बीच में नहीं लाना चाहिये, क्योंकि यदि वे अपनी सारी नकारात्मकता लाने लगे और तुम अपनी सारी नकारात्मकता लाने लगे, तो यह कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया हो जायेगी| तुम्हें बस जरा इसे देखने की जरूरत है|-ओशो|

जीवन तर्क नहीं है| जीवन प्रेम है| तर्क जटिल घटना है| प्रेम सरल है, प्रेम निर्दोष संवाद है| प्रेम जीवन के संगीत के अधिक करीब है, बजाय गणित के, क्योंकि गणित मन का है और जीवन तुम्हारें हृदय की धड़कनों में धड़कता है|-ओशो

वह सब जो तुम कर रहे हो, यदि उसमें प्रेम नहीं है तो सब झूठा और बकवास है| लेकिन वह सब जो प्रेममय है, वह सब सत्य है| प्रेम की राह पर तुम जो कुछ करते हो वह तुम्हारी चेतना को विकसित करता है| तुम्हें अधिक सत्य देता है और अधिक सत्य बनाता है| हर चीज प्रेम के पीछे छिपी हुई होती है, क्योंकि प्रेम हर चीज की सुरक्षा कर सकता है| प्रेम इतना सुन्दर है कि कुरूप चीज भी इसके भीतर छिप सकती है और सुन्दर होने का ढोंग कर सकती है|-आचार्य रजनीश ओशो|

स्त्रोत : जयपुर, राजस्थान से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका " के 01.10.12 के अंक से साभार!

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