दुख हमारा चुनाव है : जिंदगी बहुत मौके दे रही है, हम सब मौके चूक जाते हैं और हर चीज में हमने तरकीबें बना रखी हैं। अगर मुझे एक सुंदर चेहरा दिखाई पड़ा तो उस सुंदर चेहरे से मुझे जो सुख मिल सकता था, वह मैं नहीं लूंगा; उससे दुख ले लूंगा-कि वह किसी और की पत्नी है, किसी और का पति है, वह किसी और का बेटा है। तो मैं चूक गया और वह जिसका बेटा है, जिसकी पत्नी है, जिसका पति है, वह किसी और का चेहरा देख कर दुखी हुआ जा रहा है। वह अलग दुखी हो रहा है, हम अलग दुखी हो रहे हैं। सारी दुनिया दुखी हो रही है। दुख हमारा चुनाव है। तुम दुख चुन रहे हो तो दुख इकट्ठा होता चला जाता है और फिर दब जाओगे उसके नीचे, फिर परेशान हो जाओगे। दुख को चुनो मत। कौन तुमसे कहता है, दुख को चुनो? सुख को चुनो।-ओशो
दुनिया में तमाशबीनी बढती चली गई। इतनी बढ गई है कि अब हर चीज में तमाशबीनी है। तुम प्रेम नहीं करते, जब प्रेम वगैरह का खयाल उठता है, फिल्म देख आये। अरे अब दूसरे पेशेवर प्रेम करने वाले मौजूद है, जो तुमसे अच्छे ढंग से कर सकते हैं, क्या-क्या लहजे से करते हैं, तो तुम काहे को मेहनत करो अलग से! फिल्म ही देख आये, मामला खत्म हो गया।-ओशो
यह जीवन एक-एक क्षण बहुमूल्य है, क्योंकि इस एक-एक क्षण में तुम्हारे जीवन में क्रान्ति घट सकती है, तुम्हारे भीतर बुद्धत्व का अवतरण हो सकता है। तुम्हारे भीतर वही फूल खिल सकते हैं, जो बुद्ध की चेतना में खिले। वही बांसुरी तुमसे बज सकती है, जो कृष्ण के ओठों पर बजी।-ओशो
भय और प्रेम बड़ी विपरीत अवस्थाएँ हैं। भय में आदमी सिकुड़ता है, संकुचित होता है, छोटा होता है। प्रेम में फैलता है, विस्तीर्ण होता है।-ओशो
पिछले जन्मों के कर्मों के फल : लोग भी अजीब हैं, पिछले जन्मों की तो बातें करते हैं कि पिछले जन्मों के कर्मों के फल मिल रहे हैं और इसी जन्म में जो उपद्रव करते रहते हैं, उनका गणित बिठाते नहीं! पिछला जन्म था कि नहीं, यह भी तुम्हें पता नहीं है। मगर यह जन्म तो साफ है। इसी जन्म के हिसाब जरा देखो।-ओशो
जीवन का खजाना अकूत है, उसकी गहराई अथाह है, उसकी गहराई अथाह है। अगर कहीं कोई ईश्वर है तो वह जीवन में व्याप्त है, रोएं-रोएं में, कण-कण में, वही प्रतिध्वनित है। बाहर वह, भीतर वह। दशों दिशाओं में वही है।-ओशो
जीवन और मृत्यु : जीवन ही खतरनाक है। मृत्यु सुविधापूर्ण है। मृत्यु से ज्यादा आरामदायक और कुछ भी नहीं है। इसलिये लोग मृत्यु को वरण करते हैं, मृत्यु जीवन का निषेध है। लोग ऐसे जीते हैं, जिसमें कम से कम जीना पड़े, न्यूनतम-क्योंकि जितने कम जियेंगे उतना कम खतरा है, जितने ज्यादा जियेंगे उतना ज्यादा खतरा है। जितनी त्वरा होगी जीवन में उतनी ही आग होगी, उतनी ही तलवार में धार होगी।-ओशो
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