भगवान नहीं-भगवत्ता : भगवान पर जोर नहीं देता हूं, भगवत्ता पर जोर देता हूं। भगवत्ता का अर्थ हुआ, नहीं कोई पूजा करनी है, नहीं कोई प्रार्थना, नहीं किन्हीं मंदिरों में घड़ियाल बजाने है, न पूजा के थाल सजाने है, न अर्चना, न विधि-विधान, यज्ञ-हवन, वरन अपने भीतर वह जो जीवन की सतत धारा है। उस धारा का अनुभव करना है, वह जो चेतना है, चैतन्य है। वह जो प्रकाश है स्वयं के भीतर, जो बोध की छिपी हुई दुनियां है, वह जो बोध का रहस्यमय संसार है, उसका साक्षात्कार करना है, उसके साक्षात्कार से जीवन सुगंध से भर जाता है। ऐसी सुगंध से जो फिर कभी चुकती नहीं। उस सुगंध का नाम भगवत्ता है। परम रस का अनुवभ-ओशो।
सत्य के मार्ग पर: ध्यान रहे असत्य के मार्ग पर, सफलता मिल जाए तो व्यर्थ है, असफलता भी मिले तो सार्थक है। सवाल मंजिल का नहीं, सवाल कहीं पहुंचने का नहीं, कुछ पाने का नहीं, दिशा का नहीं, आयाम का नहीं। कंकड़-पत्थर इकट्ठे भी कर लिए किसी ने, तो क्या पाया। और हीरों की तलाश में खो भी गए, तो भी बहुत कुछ पा लिया जाता है, उस खोने में भी, अंनत की यात्रा पर जो निकलता है, वे डूबने को भी उबरना समझते हैं।-ओशो
सृजन कठिन है, विध्वंस आसान : सृजन कठिन है, विध्वंस आसान है: इस दुनिया में जो लोग बना नहीं सकते, वे मिटाने में लग जाते है, जो कविता नहीं रच सकते, वे आलोचक हो जाते है। जो धर्म का अनुव नहीं कर सकते, वे नास्तिक हो जाते है। जो ईश्वर की खोज नहीं कर सकते, वे कहते हैं ईश्वर है ही नहीं। अंगूर खट्टे हैं, इनकार करना आसान है, स्वीकार करना कठिन। जो समर्पित नहीं हो सकते, वे कहते हैं-समर्पित होएं क्यों? मनुष्य की गरिमा उसके संकल्प में है, समर्पण में नहीं। जो समर्पित नहीं हो सकते, वे कहते है-कायर समर्पित होते हैं, बहादुर, वीर तो लड़ते हैं। ध्यान रखना, सृजन कठिन है, विध्वंस आसान है। जो माइकल एंजलो नहीं हो सकता। वह अडोल्फ हिटलर हो सकता है। जो कालिदास नहीं हो सकता, वह जौसेफ स्टैलिन हो सकता है। जो बानगाग नहीं हो सकता, वह माओत्से तुंग हो सकता है। विध्वंस आसान है।-ओशो।
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