धर्म सिद्धांत नहीं है। धर्म फिर क्या है? धर्म ध्यान है, बोध है, बुद्धत्व है। इसलिए मैं धार्मिकता की बात नहीं करता हूँ। चूंकि धर्म को सिद्धांत समझा गया है। इसलिए ईसाई पैदा हो गए, हिंदू पैदा हो गए, मुसलमान पैदा हो गए। अगर धर्म की जगह धार्मिकता की बात फैले, तो फिर ये भेद अपने आप गिर जाएंगे। धार्मिकता कहीं हिंदू होती है, कि कहीं मुसलमान या कहीं ईसाई होती है। बल्कि धार्मिकता तो बस धार्मिकता होती है। स्वास्थ्य हिंदू होता है, कि स्वास्थ्य मुसलमान, कि स्वास्थ्य ईसाई। प्रेम जैन होता है, प्रेम बौद्ध होता है, कि प्रेम सिक्ख होता है। जीवन, अस्तित्व इन संकीर्ण धारणाओं से नहीं बंधता। जीवन अस्तित्व इन संकीर्ण धारणाओं का अतिक्रमण करता है। उनके पार जाता है।-ओशो
जीवन से सम्बंधित हर एक प्रिय और अप्रिय विषय पर महान योगी आचार्य रजनीश ओशो के अमूल्य, बेबाक और मार्गदर्शक विचारों का संकलन!
Labels
- अज्ञान
- अधर्म
- अवसाद
- अस्वस्थ
- अहंकार
- आत्मा
- आत्मीयता
- आदर्शवाद
- आनन्द
- आंसू
- ईर्ष्या
- उत्सव
- उदासी
- ओशो
- ओशो वाणी
- कांटे
- काम
- कामुक
- कुरूप
- क्रान्ति
- क्रोध
- क्षण
- खुशी
- गुलाम
- घृणा
- चालाक
- जन्म
- जहर
- जागृति
- जिंदगी
- जीवन
- ज्ञान
- ज्योतिषी
- ठेकेदार
- डॉ. निरंकुश
- डॉ. मीणा
- त्याग
- दमन
- दांव
- दुख
- देह
- धन
- धर्म
- धार्मिक
- ध्यान
- नकारात्मक
- नफरत
- नमस्कार
- नींद
- पति
- पत्नी
- परमात्मा
- पशु
- पुरोहित
- प्यार
- प्रार्थना
- प्रेम
- प्रेस
- प्रेसपालिका
- फूल
- बुद्धत्व
- बुराई
- भगवत्ता
- भगवान
- भय
- भोग
- भोजन
- मनुष्य
- मूर्च्छा
- मृत्यु
- मौत
- राजनेता
- लड़ना
- विज्ञान
- विध्वंस
- वृक्ष
- सत्य
- सपने
- सफल
- समाज
- समाधि
- सरल
- साक्षी
- सुख
- सुन्दर
- सृजन
- सेक्स
- स्त्री
- स्मृति
- स्वतंत्र
- स्वीकार
- हंसी
- हृदय
स्वास्थ्य रक्षक सखा-Health Care Friend
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment