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स्वास्थ्य रक्षक सखा-Health Care Friend

Friday 4 January 2013

खुशी के खिलाफ समाज के ठेकेदार! ओशो वाणी : जनवरी, 2013

खुशी के खिलाफ : जो रोगी है, अस्वस्थ है, बदसूरत है, प्रतिभाहीन है, जिसमें रचनाशीलता नहीं है, जो घटिया है, जो मूर्ख है, ऐसे सभी लोग वर्चस्व स्थापित करने के मामले में काफी चालाक होते हैं| वे हावी रहने के तरीके और जरिए खोज ही निकालते हैं| वे राजनेता बन जाते हैं| वे पुरोहित बन जाते हैं| और चूँकि जो काम वे खुद नहीं कर सकते, उसे वे दूसरो को भी नहीं करने दे सकते| इसलिए वे हर तरह की खुशी के खिलाफ होते हैं| जरा इसके पीछे का कारण देखो| अगर वह खुद जिंदगी का मजा नहीं ले सकता तो वह कम से कम तुम्हारे मजे में जहर तो घोल ही सकता है| इसीलिए सभी तरह के विकलांग एक जगह जमा होकर अपनी बुद्धि लगाते हैं, ताकि जोरदार नैतिकता का ढॉंचा खड़ा कर सकें और फिर उसके आधार पर हर चीज की भर्त्सना कर सकें|-ओशो
समाज के ठेकेदार : जो नैतिकतावादी, समाज के ठेकेदार हैं; उन्हीं का दुनिया को विषाक्त बनाने में सबसे बड़ा हाथ है| और ये लोग हर जगह हैं| ऐसे लोग ही ज्यादातर शिक्षक, शिक्षाविद, प्रोफेसर, कुलपति, संत, बिशप, पोप वगैरह बनते हैं; वे ऐसे बनना चाहते हैं, ताकि वे दूसरों की निंदा कर सकें| यहां तक कि वे इसके लिये सब कुछ त्यागने के लिए तैयार रहते हैं| अगर उन्हें दूसरों की निंदा करने का सुख मिले| वे हर कहीं हैं, कई परदों के पीछे छुपे हुए| और वे हमेशा तुम्हारी भलाई के लिए काम करते हैं, सिर्फ तुम्हारी भलाई के लिए, इसलिए तुम उनके आगे रक्षाहीन हो| उनकी विरासत वास्तविक और बड़ी है| पूरे इतिहास पर उनका प्रभुत्व रहा है|-ओशो

अस्वस्थ व्यक्ति मजा ले ही नहीं सकता, इसलिए वह अपनी सारी ऊर्जा वर्चस्व कायम करने में लगा देता है| जो गीत गा सकता है, जो नाच सकता है, वह नाचेगा और गाएगा, वह सितारों भरे असामान के नीचे उत्सव मनाएगा| लेकिन जो नाच नहीं सकता, जो विकलांग है, जिसे लकवा मार गया है, वह कोने में पड़ा रहेगा और योजनाएँ बनाएगा कि दूसरों पर कैसे हावी हुआ जाए| वह कुटिल बन जाएगा| जो रचनाशील है, वह रचेगा| जो नहीं रच सकता, वह नष्ट करेगा, क्योंकि उसे भी तो दुनिया को दिखाना है कि वह भी है|
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काम-केंद्र पर संयम करने से व्यक्ति काम के पार जाने में सक्षम हो जाता है : जब व्यक्ति कामवासना से थक जाता है तो तुरंत भीतर चंद्र ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। जब सूर्य छिप जाता है तब चंद्र का उदय होता है। इसीलिए तो काम-क्रीड़ा के तुरंत बाद व्यक्ति को नींद आने लगती है। सूर्य ऊर्जा का काम समाप्त हो चुका, अब चंद्र ऊर्जा का कार्य प्रारंभ होता है। भीतर की सूर्य ऊर्जा काम-केंद्र है। उस सूर्य ऊर्जा पर संयम केंद्रित करने से, व्यक्ति भीतर के संपूर्ण सौर-तंत्र को जान ले सकता है। काम-केंद्र पर संयम करने से व्यक्ति काम के पार जाने में सक्षम हो जाता है। काम-केंद्र के सभी रहस्यों को जान सकता है। लेकिन बाहर के सूर्य के साथ उसका कोई भी सम्बन्ध नहीं है।-आचार्य रजनीश ओशो

युक्तियुक्त मनुष्य और तर्कसंगत मनुष्य के बीच अंतर जानना बड़ा जरूरी है। एक युक्तियुक्त मनुष्य कभी सिर्फ तर्कसंगत नहीं होता, क्योंकि एक युक्तियुक्त मनुष्य अपने अनुभव से जानता है कि तर्कसंगत और तर्कहीनता दोनों ही जीवन के पहलू हैं; कि जीवन में तर्क और भावनाएं, मस्तिष्क और हृदय दोनों होते हैं।-आचार्य रजनीश ओशो

अंधों ने और अंधों के शोषकों ने मिलकर जो षड़यंत्र किया है, उसने करीब-करीब धर्म की जड़ काट डाली है| धर्म की साख है और अधर्म का व्यापार है|-आचार्य रजनीश ओशो

स्त्रोत : जयपुर, राजस्थान से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका " के 01.01.13 & 16.01.13 के अंक से साभार!

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