ध्यान का अर्थ है, इस क्षण में होना, इस क्षण के पार न जाना।-ओशो
सिवाय ध्यान के मृत्यु को कोई और चीज पार नहीं करती है। ज्ञान नहीं, ध्यान ही केवल मृत्यु में भी साथी हो सकता है। सिर्फ ध्यान स्वतंत्र बनाता है।-ओशो
एक भिखमंगा भी त्यागी हो सकता है। क्योंकि त्याग का कोई सम्बन्ध, कितना छोड़ा है, इससे नहीं, बल्कि छोड़ने के भाव से है।-ओशो
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